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Saturday 24 September 2016

कहने, कहने का फर्क

आपके बात करने का तरीका ही बता देता है कि आप दूसरे लोगों के emotions की कदर करते हो या नहीं..!!!
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ऐसी ही एक कहानी है जो हमेशा से ही मुझे motivate करती आई है और किस व्यक्ति से; किस तरह बात करनी है; इसकी भी समझ देती है...!!
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कहानी 01...

"बहुत समय पहले की बात है एक राजा ने एक भविष्यवक्ता को अपने दरबार में बुलाकर उससे अपना भविष्य जानना चाहा...!!!
राजा ने उस भविष्यवक्ता से पूछा - क्या आप बता सकते हैं कि मैं अपने कुल-खानदान में कब तक जीवित रहूँगा?
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भविष्यवक्ता राजा का हाथ देखते हुए बोले :- बधाई हो महाराज!! आप अपने कुल खानदान में सबसे लम्बे समय तक जीवित रहोगे और शाशन भी करोगे।
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इस पर राजा खुश हुआ और उसने अपने गले से मोतियों की माला निकालकर भविष्यवक्ता को दे दी।
मोतियों की माला लेकर भविष्यवक्ता चला गया।
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दूसरे दिन राजा ने सोचा कि कहीं उसने मेरे डर के कारण तो ऐसा नहीं बोला...??
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राजा ने पहले भविष्यवक्ता की परीक्षा लेनी चाही और उसने दूसरे भविष्यवक्ता को अपने दरबार में बुला लिया।
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राजा ने उससे भी वही प्रश्न दोहराया :- क्या आप बता सकते हैं कि मैं अपने कुल-खानदान में कब तक जीवित रहूँगा?
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दूसरा भविष्यवक्ता भी राजा का हाथ देखते हुए बोला :- बधाई हो महाराज!!! आपके कुल-खानदान के सभी लोग; आपसे पहले मर जायेंगे और वो कभी शाशन भी नहीं कर पायेंगे।
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ये सुनकर राजा आगबबूला हो गया और बोला :- क्या बकते हो..?? बोलने की तमीज नहीं है तुम्हें..??
तुम्हें ऐसा अशुभ बोलने का दंड मिलेगा..!!!
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राजा ने फिर अपने सैनिकों को आदेश दिया कि इस भविष्यवक्ता में 15 कोड़े लगाये जाएँ।
और इस तरह उस भविष्यवक्ता को 15 कोड़े लगाये गए।
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अब आप देख सकते हैं कि दोनों भविष्यवक्ताओं की बात का मतलब तो एक ही था लेकिन उनके बात कहने का तरीका बहुत ही अलग।
सिर्फ बात कहने के तरीके से ही पहले भविष्यवक्ता को ईनाम मिली तो दूसरे को सजा।
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वैसे ठीक ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ।

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My real story 02...
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मैंने कुछ दिन पहले एक blog लिखा तो मैंने अपने एक friend से पूछा कि भाई मेरा ये blog पढ़के बताओ कि कैसा है...??
उसने पूरा blog पढ़ा और बताया कि ये भी कोई blog है एकदम बकवास...!!!
इस पर मैंने कहा :- भाई किस जगह बकवास है बताओ ना plzzz.
फिर उसने कहा :- ये सब मुझे नहीं पता; मैं सिर्फ इतना जानता हूँ कि ये blog बकवास है और इसे कोई अच्छा नहीं बताएगा बस..!!
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मुझे उसकी ये बात सही नहीं लगी।
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और फिर मैंने अपने दूसरे friend से भी वही प्रश्न दोहराया :- भाई मेरा ये blog पढ़के बताओ कि कैसा है...??
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उसने भी पूरा blog पढ़ा और बताया कि अगर इस blog के बीच में कुछ सुधार कर दिया जाए तो और भी अच्छा हो जाए।
जब मैंने फिर से अपने blog को देखा तो वास्तव में ही blog के बीच में correction की जरुरत थी।
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फिर मैंने अपने blog के बीच में correction कर; उन दोनों friends को फिर से पढ़ाया।
अब दोनों blog को अच्छा बता रहे थे।
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यहाँ मुझे पहले friends की बात थोड़ी बेकार लगी जबकि दूसरे friend की बात उतनी ही अच्छी।
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खैर, मेरे दोनों friends के कहने का मतलब एक ही था कि मेरा blog अच्छा नहीं है लेकिन उन दोनों के कहने का तरीका बहुत अलग।
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पहले दोस्त ने blog को बकवास बताकर मुझे थोड़ा confuse किया तो दूसरे दोस्त ने भी वही बात; दूसरे तरीके से बोलकर मुझे राह दिखाई।
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so friends, मेरे कहने का मतलब यही है कि हमें हमेशा पहले भविष्यवक्ता और दूसरे दोस्त की तरह बनना चाहिए और सोच समझकर बोलना चाहिए।
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इस तरह बोलना चाहिए कि सामने वाले तक हम अपनी बात पहुंचा भी दें और उसे बुरा भी नहीं लगे।
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इस तरह सिर्फ सोच समझकर और अच्छा बोलने से हम दूसरों के दिल में अपनी जगह बना सकते हैं।

जय हिन्द।

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