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Friday 22 July 2016

आज का सच...

आज का सच...

आज 5 वर्ष के बालक को हम टैब या मोबाइल फोन की स्क्रीन पर game खेलते या उँगलियाँ चलाते देखते हैं, तो हमें आश्चर्य होने के साथ-साथ ख़ुशी भी बहुत होती है, और होनी भी चाहिए; क्योंकि आखिर वह 5 वर्ष का ही तो बालक है जो mobile में game को perfect तरीके से खेलता है, और हमें आश्चर्य में डाल देता है।

फिर आगे चलकर जब वो बच्चा 10 वर्ष का हो जाता है तो internet पर भी active हो जाता है और mobile उसका एक आवश्यक जरुरत बन जाता है। बिल्कुल पानी की तरह और लड़का मछली की तरह। फिर अगर आप मछली को पानी से दूर करोगे तो उसका तड़पना स्वाभाविक है। फिर उसका मोबाइल से इस तरह का लगाव हमारी 5 वर्ष पहले की ख़ुशी को गम में बदल देता है। फिर हम अपने उस बच्चे को नाना प्रकार से समझाते हैं लेकिन हमारी बातों का असर भी उस पर ना के बराबर ही रहता है।
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अब अगर आप एक बार दिल से सोचोगे तो इसका जिम्मेदार खुद को ही पाओगे। बचपन से electronic screen पर active रहने से कहीं ना कहीं उसकी आँखों पर भी प्रभाव पड़ता है; और फिर एक नजर चश्मा भी उसकी एक स्थायी जरुरत बन जाता है।
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ये सब होने के बाद हम अपने बारे में सोचते हैं कि जब हम 10 या 12 वर्ष के थे, तब सिर्फ mobile का नाम ही सुना था लेकिन ये इतनी जल्दी मेरे परिवार में हावी हो जायेगा; शायद ही सोचा हो।
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खैर, technology के चलते इतना तो है कि हमें किसी व्यक्ति या स्थान की जानकारी चाहिए होती है, तो हम किसी व्यक्ति को पूछने की बजाय direct "गूगल महाराज" से पूछते हैं और "गूगल महाराज" भी तुरन्त ढेर सारी जानकारियां लाकर हमारे सामने रख देते हैं; अब हम यहाँ भी थोड़ा confuse रहते हैं कि कौन सी जानकारी को चुनें और कौन सी छोड़ें। खैर, आखिर में हमें वो जानकारी मिल ही जाती है। technology से फायदे तो बहुत हैं ही लेकिन नुकसान भी कम नहीं हैं; ये तो सभी भली-भांति जानते ही हैं।
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आज internet पर सरकारी और गैर-सरकारी सभी कार्य paperless हो गए हैं; यहाँ तक कि अब परीक्षाएं भी online होने लगी हैं तो इससे ये तो स्पष्ट है कि आगे चलकर paper का महत्व बहुत ही कम है। और थोड़ा इससे भी आगे बढ़ें तो कागज और पेन ही बंद हो जायेंगे।
सारे कार्य ही internet पर होंगे और हमारी आने वाली तीसरी या चौथी "पीढ़ी" कॉपी-पेन से नहीं, डायरेक्ट computer पर typing करेगी। और जब उस पीढ़ी को अपने काम से फुरसत मिलेगी और हमारे पास बैठेंगे तो हम भी उन्हें अपने जमाने की बात बताया करेंगें - कि "बेटे हमारे जमाने में लोग अपने हाथ से किसी पेन से कागज नामक वस्तु पर लिखा करते थे।" और दिलचस्पी की बात तो ये होगी, कि वो हमारी इस बात पर भी आश्चर्य करेंगे (ठीक उसी तरह, जिस तरह पहले के लोग पंख से लिखते थे और हम आज उनके पंख की लिखावट पर भी आश्चर्य करते हैं।) और हम उनके इस आश्चर्य भरे चेहरे को देखकर मुस्कुरा देंगें और फिर से अपनी पुरानी यादों में खो जायेंगे।
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 Friends मेरे कहने का आशय ये है कि mobile को बच्चों के खेलने की चीज ना बनायें; उसे mobile ही रहने दें; खिलौना न बनायें तो ही अच्छा होगा। समय-समय पर बच्चों को हर चीज उपलब्ध करते रहें।

उसे बचपन से ही "नेट का कीड़ा" न बनायें और ना ही mobile का आदी।
शुरुआत में उसे mobile से होने वाले नुकसान के बारे में बताएं और उसे mobile से दूर रखें।
उसे बताएं कि किस तरह कॉपी-पेन की लिखाई; mobile phone की typing से बेहतर होती है। और कॉपी पर पेन से लिखना उबाऊ(boring) नहीं बल्कि बड़ा ही मजेदार होता है।
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जय हिन्द!!!

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