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Monday 26 September 2016

नई सीख

किसी आश्रम में एक गुरूजी अपने शिष्यों को धनुर्विद्या (archery) सिखाया करते थे।
शिष्य भी रोजाना धनुष-बाण का अभ्यास किया करते थे, और रोज एक नई विद्या सीखा करते थे!!

एक दिन गुरूजी ने सभी शिष्यों को अपने पास बुलाया और कहा कि आज मैं किसी को धनुर्विद्या नहीं सिखा रहा लेकिन धनुर्विद्या से सम्बंधित ही कुछ बातें बताऊँगा।
इसलिए सभी लोग अपने धनुष-बाण एक तरफ रख दें।
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सभी शिष्यों ने भी अपने धनुष-बाण एक तरफ रख दिए।
फिर गुरूजी उन्हें धनुर्विद्या की कुछ बारीकियाँ समझाने लगे...!!!
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जब बारीकियाँ समझाते-समझाते पूरा समय निकल गया तो एक शिष्य बोला :- "गुरूजी आज का पूरा समय ऐसे ही निकल गया; अगर आप आज भी धनुर्विद्या का अभ्यास करवाते तो हम एक कला और सीख जाते लेकिन आप ये छोटी-छोटी बातें क्यूँ सिखा रहे हैं क्या होगा इन बारीकियों से...???"
ये सुनकर गुरूजी मन ही मन उसकी मूर्खता पर क्रोधित हो रहे थे।
लेकिन फिर भी उन्होंने अपने क्रोध पर काबू पाते हुए कहा :- वत्स!!! इस बात का जवाब मैं आपको कल दूँगा।
(आप यह Article technic jagrukta वेबसाइट पर पड़ रहे हैं)
सुबह हुई...
सभी शिष्य जल्दी-जल्दी गुरूजी के पास पहुँचे देखा तो; गुरूजी अपने हाथ में दो कुल्हाड़ियाँ लिए हुए थे।
एक शिष्य ने आगे बढ़कर पूछा :- गुरूजी!!! भला ये कुल्हाड़ी क्यों...???
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गुरूजी (कल वाले शिष्य को अपने पास बुलाते हुए) :- वत्स!!! आप जानना चाहते हो ना कि कल मैं वो धनुर्विद्या की बारीकियां क्यों सिखा रहा था।
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शिष्य :- हाँ गुरूजी मैं वो जानना चाहता हूँ।
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इस पर गुरूजी ने अपने एक दूसरे शिष्य को भी अपने पास बुलाया।
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और दोनों शिष्यों को कुल्हाङी देते हुए बोले :- सामने देखो!!! दो सूखे पेड़ हैं; आप दोनों को इन कुल्हाङी से एक-एक पेड़ काटना है अब देखना ये है कि आप दोनों में से पेड़ को कौन पहले काट पाता है।
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पहला शिष्य (जो अपना जवाब चाहता था) जल्दी से पेड़ के पास गया और बिना कुछ सोचे-समझे ही पेड़ को काटने लग गया।
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जबकि दूसरे शिष्य ने देखा कि कुल्हाङी की धार बहुत मोटी है तो वह पेड़ को काटने की बजाय पत्थर पर कुल्हाङी की धार तेज करने में लग गया।
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उधर; कुल्हाड़ी की धार मोटी होने की वजह से पहला शिष्य कुछ ही पल में थक गया; और आराम करने लगा।
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जबकि इधर; दूसरे शिष्य ने कुल्हाङी की धार तेज करके कुछ ही पल में पेड़ को काटकर ढेर कर दिया।
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पहले शिष्य का सिर शर्म से झुक गया था।
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इस पर गुरूजी ने उसे बड़े प्यार से समझाया :- वत्स!!! कुछ समझे..??
इसीलिए हम आपको कल धनुर्विद्या ना सिखा कर; उसकी बारीकियाँ सिखा रहे थे।
क्योंकि अभी तक आपने जो धनुर्विद्या सीखी वो इस मोटी धार वाली कुल्हाङी की तरह थी जिसकी आप बिना धार तेज किये हुए सिर्फ पेड़ को काटे जा रहे थे।
इसलिए कल मैंने सोचा कि क्यों ना आप लोगों की कुल्हाङी की धार को तेज कर दिया जाए जिससे आप पेड़ को जल्दी काट सको।
अर्थात् धनुर्विद्या की बारीकियां सीखकर आप धनुर्विद्या में निपुण हो सको।
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सभी शिष्य गुरूजी की बात को अच्छी तरह समझ चुके थे, और किसी भी कार्य को करने से पहले; उसे किस तरह किया जाए ये भी समझ गए थे।
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friends, बिल्कुल ऐसा ही हमारे साथ भी होता है; जब हमें कोई कार्य दिया जाता है, तो हम कोई strategy बनाने से पहले उसे पूरा करने में लग जाते हैं, दरअसल काम तो पूरा हो जाता है लेकिन हम उस काम में निपुण नहीं हो पाते।

इसलिए किसी भी कार्य को करने से पहले उसके बारे में पल दो पल सोचना बहुत जरुरी है; उसकी strategy बनाना बहुत जरुरी है, ये सोचना जरुरी है कि उस काम को किस तरह से किया जाए ताकि वो जल्दी finish हो सके।
इसका मतलब ये नहीं कि 2 मिनट का काम हो और आप सोचने में ही 10 मिनट लगा दो।
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आशा करता हूँ कि आपको मेरा ये blog पसंद आया होगा।
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