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Thursday 15 September 2016

सफलता के लिए :- डाँट से ज्यादा दिलासा जरुरी

उपवाक्य की गहराई में अगर हम जाएं तो उसका एक-एक शब्द सच्चाई से परिपूर्ण है कि सफलता के लिए डांट से ज्यादा दिलासा जरूरी।


अगर इस वाक्य को आप भली-भांति समझते हैं तो आप शायद निभाते भी हों लेकिन अधिकतर मामलों में लोग कहीं ना कहीं इस वाक्य से अनजान है...!!!

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यह वाक्य है उन तमाम छात्र तथा युवा वर्ग के लोगों के लिए जिन्होंने जिंदगी में असफल होकर या तो आत्महत्या कर ली या फिर अपना करियर दांव पर लगा; हाथ पर हाथ रख कर बैठ गए।
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उनके ऐसा कदम उठाने के जिम्मेदार कोई और नहीं बल्कि उनके आस-पास के लोग, समाज तथा अभिभावक ही हैं।
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इस वाक्य के पीछे एक छोटी सी कहानी है-

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मध्यप्रदेश के किसी इलाके में सुजीत नाम का एक लड़का रहता था।
जो गरीब था लेकिन अपने माता पिता तथा समाज की नजरों में बहुत प्रिय था।
सुजीत पढ़ाई लिखाई में भी ठीक-ठाक था।
और उसने 10th class की परीक्षा भी अच्छे अंकों से पास की।
अभी तक सभी ठीक-ठाक चल रहा था।
लेकिन गरीब होने की वजह से वह 11th class में नहीं पढ़ पाया।
और फिर जब वह 12th class में आया तो उसके ऊपर पढ़ाई का दवाब आ गया।
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जैसे जैसे ही परीक्षा (exams) नजदीक आ रही थी; वैसे-वैसे ही सुजीत पर पढ़ाई का दवाब(pressure) भी आ रहा था।
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और दवाब ने सुजीत पर उल्टा असर कर दिया।
वो दवाब में पढ़ने वाला छात्र नहीं था।
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उसे बहुत फिक्र होने लगी कि वह अब exams में अच्छे marks कैसे ला पायेगा...???
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उसकी इस फिक्र का असर उसकी परीक्षा और results पर गया।
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जब results आया तो पता चला कि सुजीत दो subject में असफल (fail) हो गया है।
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अब तो सुजीत को उसके मम्मी-पापा, समाज तथा आसपास के सभी लोगों ने ताने (बुरा-भला) कहना start कर दिया।
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कोई भी ऐसा नहीं था जो उसे कह सके कि सुजीत कोई बात नहीं हार जीत तो लगी रहती है, तुम एक बार फिर प्रयास करो।
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सभी लोग उसे धैर्य बंधाने की जगह डाँटने लगे हुए थे।
हुआ यूँ कि सुजीत का मनोबल टूट गया।
अब उसकी आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा था कि आखिर क्या करे, क्या ना करे...!!!
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फिर उसके शैतानी दिमाग में ना जाने क्या-क्या विचार आने लगे; उसे अपनी जिन्दगी नर्क लगने लगी और उसने इस नर्क से निकल जाना ही उचित समझा।
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सुबह हुई...
तो किसी ने बताया की सुजीत पास के पहाड़ी वाले इलाके में बेहोश पड़ा है।
ये सुनकर उसके माँ-बाप के होश उड़ गये; जब दौड़े दौड़े वहां पहुँचे तो देखा कि सुजीत की साँसे हमेशा-हमेशा के लिए थम गई थीं।
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जब लोग उसे उठाने लगे तो देखा कि सुजीत के हाथ में कोई कागज का टुकड़ा है।
जब उसे खोला तो पता चला कि वो suicide note थी; जिसमें लिखा था:-
"आप सब लोगों को मेरी वजह से नाराज तथा परेशान होना पड़ा, अतः मैंने आपकी नाराजगी तथा परेशानी दूर करने के लिए यह कदम उठाया है।"
यह सुनकर सभी लोग फूट-फूट कर रोने लगे।
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सुजीत ने ये कहाँ सोचा था कि उसका ये कदम उसके माँ-बाप के लिए और परेशानी खड़ी कर देगा।
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इतनी सी थी सुजीत के जीवन की कहानी..!!
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ऐसे ना जाने कितने सुजीत हैं, जो समाज के इन तानों तथा डाँटने की वजह से आत्महत्या जैसा कदम उठाते हैं।
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मैं ये नहीं कहता कि जो असफल हुआ है; उसे कतई ना डाँटो।
हाँ थोड़ी देर के लिए आप अपनी नाराजगी व्यक्त कर सकते हैं लेकिन उसके बाद आपको उसे सफल होने का धैर्य बंधाना होगा।
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इसी तरह अगर सुजीत को लोग डाँटने की बजाय सफल होने का धैर्य बंधाते तो शायद वह आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठाता और दूसरे attempt में काफी हद तक सफल भी हो जाता।
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एक बात छात्र और माँ-बाप दोनों को समझनी होगी।
छात्र को यह कि पहले वह जी तोड़ मेहनत करे फिर चाहे सफलता हाथ लगे अथवा असफलता।
माँ बाप को यह कि अगर बच्चे को मेहनत करने के बावजूद भी असफलता हाथ लगी है तो उसे कतई डाँटें नहीं बल्कि उसे दूसरे attempt में सफल होने का दिलासा दें।
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मेरा मानना है कि - अगर कोई व्यक्ति कहीं असफल हुआ है तो उससे मुँह मोड़ने या डांटने की बजाय उसे सफल होने का दिलासा दें तो वह काफी हद तक सफल हो सकता है।
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अतः हम कह सकते हैं कि सफलता के लिए :- डाँट से ज्यादा दिलासा जरुरी।
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जय हिन्द।

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